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कविता

मेन्यूकार्ड

विमल चंद्र पांडेय


थोड़ी अधिक उम्र वाले लोग आशीर्वाद की मुद्राओं में आ गए हैं
यह सीखने सिखाने और मुफ्त की सलाहों के आगे का दौर है
सूरज डूबता हुआ उतरा है टीवी टॉवर के उपर तक
आइसक्रीम के कोन पर किसी ने टहक लाल चेरी रख दी है
कविताएँ लिखना इस दौर का सबसे आसान काम है
खड़े होना सबसे मुश्किल
देर तक खड़े रहना उससे मुश्किल

वे सौंदर्य को सुंदर नहीं रहने देंगे अधिक दिनों तक
हम खोते जाने के इस दौर में क्या क्या बचाएँगे
ऐसा करो तुम कवित्त बनाओ
हम तालियाँ बजाएँगे

लगभग बंद शटरों से वे लोग गुजर चुके हैं जिनका चयन स्पष्ट था
अब अगर आपको घुसना है तो रेंग कर जाना होगा
यह रीढ़ को लचीला करने के अभ्यास का समय है

यह दौर पिछले दशकों से अधिक चमकीला है
उनकी चाँद चमकती है पूनम के चाँद की तरह
उनके चश्मों की कमानियाँ सूरज की तरह झिलमिलाती हैं
उनके पेट गैस भरे गुब्बारों की तरह हैं
हमें गुब्बारे बचपन से पसंद थे और सिर्फ इसलिए
कि उनके फूटने की आवाज हमें बताती थी कि हम भी कुछ कर सकते हैं

छत पर अकेली शामों के धुंधलके में मत कोशिश करो पीछे झाँकने की मेरे दोस्त
वहाँ गिर गए तो वापस आने का रास्ता कठिन है
तुम भटक सकते हो जैसे दिन में कहानियाँ सुनाने पर रास्ता भूल जाया करते थे मामा
हालाँकि मामा न भूलने के लिए जाने जाते थे
माँ की बात पर भरोसा कर मैंने नहीं सुनी कोई भी कहानी दिन में
एक दिन अचानक भटक गए रास्ता और नहीं लौटे वह
अतीत की किसी डामर लगी सड़क पर वह घूम रहे होंगे यह कहते हुए
एक सेकेंड हैंड कार खरीद कर वह उसे चलवाएँगे बलिया से बनारस तक

कवियों को जल्दी-जल्दी प्रोत्साहन दो
उनकी और भी मजबूरियाँ हैं जैसे हथेलियाँ चूमना और छुटि्टयों के लिए गिड़गिड़ाना
कविताओं की जगह आलोचकों के नाम लो
कविताएँ उनसे ही महान बनती हैं
अपने बॉस को बताओ कि तुम्हारी दादी आज तीसरी बार अचानक मर गई हैं
पत्नी को एक महँगे रेस्टोरेंट में ले जाकर मेन्यू को दाहिनी तरफ से देखना शुरू करो

अगर हम अपनी जगह को लेकर इतने असमंजस में रहे
वह वक्त अधिक दूर नहीं है
जब कविता को भी दाहिनी तरफ से पढ़ा जाएगा

 


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