| 
 अ+ अ-
     
         
         
         
         
        
         
        
         
            
         | 
        
        
        
      | 
            
      
          
 
 
          
      
 
	
		
			| 
					इस धरती परअपने शहर में मैं
 एक उपेक्षित उपन्यास के बीच में
 एक छोटे-से शब्द-सा आया था
 
 वह उपन्यास
 एक ऊँचा पहाड़ था
 मैं जिसकी तलहटी में बसा
 एक छोटा-सा गाँव था
 
 वह उपन्यास
 एक लंबी नदी था
 मैं जिसके बीच में स्थित
 एक सिमटा हुआ द्वीप था
 
 वह उपन्यास
 पूजा के समय बजता हुआ
 एक ओजस्वी शंख था
 मैं जिसकी गूँजती ध्वनि-तरंग का
 हजारवाँ हिस्सा था
 
 वह उपन्यास
 एक रोशन सितारा था
 मैं जिसकी कक्षा में घूमता हुआ
 एक नन्हा-सा ग्रह था
 
 हालाँकि वह उपन्यास
 विधाता की लेखनी से उपजी
 एक सशक्त रचना थी
 आलोचकों ने उसे
 कभी नहीं सराहा
 जीवन के इतिहास में
 उसका उल्लेख तक नहीं हुआ
 
 आखिर क्या वजह है कि
 हम और आप
 जिन उपन्यासों के
 शब्द बन कर
 इस धरती पर आए
 उन उपन्यासों को
 कभी कोई पुरस्कार नहीं मिला?
 |  
	       
 |