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कविता

उन्होंने कहा

मस्सेर येनलिए

अनुवाद - रति सक्सेना


भीड़ से टकराते हुए मैंने कहा
'तुम मेरी माँ हो क्या'
दरख्त की खोह से पूछा
आसमान में बिखरी चिड़ियों से पूछा
मेरी आँखे ऊपर देखती हैं

मेरी जीभ से ऊपर,
मेरे हाथों के ऊपर से पुल गुजर रहे हैं
मैं किस्से के भीतर हूँ
मेरे केश किस्से बनाते हैं
मैं अपनी पसलियों को पकड़ दबाती हूँ
मेरी आँखों में
मेरी मानवता भीड़ में पिघलने को
उतावली है, मैं पूछती हूँ
वे कहते हैं कि 'जरूर मेरी माँ होगी'
संतरे के छिलके की तरह
वे कहते हैं...

 


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