कातिक पयान करने को है, उठाया है दाहिना चरण, देहरी को लाँघ आया है, लेकिन अँगूठा अभी भूमि से लगा नहीं, ऊपर ही ऊपर है, जैसे जगा नहीं।
हिंदी समय में त्रिलोचन की रचनाएँ