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कविता

कला के अभ्यासी

त्रिलोचन


कहेंगे जो वक्ता बन कर भले वे विकल हों,
कला के अभ्यासी क्षिति तल निवासी जगत के
किसी कोने में हों, समझ कर ही प्राण मन को,
करेंगे चर्चाएँ मिल कर स्मुत्सुक हॄदय से ।

 


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हिंदी समय में त्रिलोचन की रचनाएँ