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कविता

स्वर

त्रिलोचन


स्वर व्यतीत कदापि नहीं हुए
समय-तार बजा कर जो जगे,
रँग गई धरती अनुराग से,
गगन में नवगुंजन छा गया।

 


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हिंदी समय में त्रिलोचन की रचनाएँ