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कविता

मेरे वृंत पर

भवानीप्रसाद मिश्र


मेरे वृंत पर
एक फूल खिल रहा है
उजाले की तरफ मुँह किये हुए।

और उकस रहा है
एक काँटा भी
उसी की तरह
पीकर मेरा रस
मुँह उसका
अँधेरे की तरफ है।

फूल झर जाएगा
मुँह किए-किए
उजाले की तरफ
काँटा
वृंत के सूखने पर भी
वृंत पर बना रहेगा

 


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