गढ़ के बड़े चबूतरे पर संगमरमर के नक्काशीदार मयूरासन पर ठाकुर बैठा था। चबूतरे पर कश्मीरी गलीचा बिछा था।
पास ही फर्श पर चौधरी बैठा था। ठाकुर बिना बात ही भगवान जाने आज क्यों बहुत खुश था। मूँछों पर ताव देते हुए चौधरी ने मसखरी के सुर में कहा, 'चौधरी , मैं मयूरासन
पर बैठा तो तू फर्श पर बैठ गया। अगर मैं फर्श पर बैठ जाऊँ तो तू कहाँ बैठेगा?'
चौधरी ने कहा, 'हुकम, आप फर्श पर विराजेंगे तो मैं चबूतरे के नीचे जमीन पर बैठूँगा। मुझे आपसे नीचे ही बैठना पड़ेगा।'
'तू नीचे ही बैठेगा इसके क्या माने? मैं फर्श पर बैठूँ तो तू कहाँ बैठेगा?'
चौधरी ने कहा, 'जमीन पर बैठें आपके दुश्मन। जमीन पर बैठने के लिए हमीं बहुत हैं। पिछले जनम में आपने अच्छे करम किए इसलिए आप के नीचे तो हमेशा आसन रहेगा।'
ठाकुर ने कहा, 'नहीं रे पगले, मान ले कभी ऐसा मौका आ जाए। तू टाल-मटोल मत कर, साफ-साफ बता! अगर मैं जमीन पर बैठा तो तू कहाँ बैठेगा?'
चौधरी मुस्कराकर बोला, 'हुकम, अगर आप जमीन पर बैठे तो मैं थोड़ा गड्ढा खोदकर नीचे बैठ जाऊँगा।'
ठाकुर ने पूछा, 'अगर मैं गड्ढे में बैठ गया तो तो तू कहाँ बैठेगा?'
चौधरी चक्कर में पड़ गया, सोचकर जबाव दिया, 'अगर आप गड्ढे में बैठे तो मैं थोड़ी मिट्टी हटा और नीचे बैठ जाऊँगा।'
'पर चौधरी, अगर मैं वहाँ बैठ गया तो तू कहाँ बैठेगा?'
चौधरी बोला, 'मैं उससे भी गहरे गड्ढे में बैठ जाऊँगा। आपका आसन तो हमेशा ऊँचा ही रहेगा सरकार!'
पर ठाकुर को तसल्ली नहीं हुई। कहा, 'पर चौधरी, मैं उस गहरे गड्ढे में बैठ गया तो तू कहाँ बैठेगा?'
इन बेहूदे सवालों से चौधरी तंग आ गया। ढीठता से बोला, 'मैं बार-बार कह रहा हूँ कि आप ऊपर ही विराजें, पर आप गहरे गड्ढे में ही बैठना चाहें तो आपकी मर्जी! मैं
उसमें रेत डालकर ऊपर बड़ी शिला रख दूँगा।'