hindisamay head


अ+ अ-

कविता

बरगद

संजय चतुर्वेदी


जमीन में गहरी अड़ी है जिसकी परंपरा
और छतरी की तरह फैली है जिसकी कोशिश
उलझा है जो धरती और आसमान के बीच
कार्बनिक रसायन की गुत्थियों में बैंजीन-चक्र की तरह
जड़ बनकर फिर जमीन पकड़ते हैं जिसके तने
सदियों से गाँव के बाहर जुगाली करता पिता-सा डायनोसार
जिसकी छाती पर बैठे हैं मकड़ी, बंदर और गिलहरियाँ
और जो चीटीं रेंगती है उसके पत्तों पर
जमीन में गहरी अड़ी है उसकी भी परंपरा
और छतरी की तरह फैली है उसकी भी कोशिश।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में संजय चतुर्वेदी की रचनाएँ