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कविता

बुरे दिन आ रहे हैं

संजय चतुर्वेदी


क्रांतियाँ रोकने का एक ही तरीका है
पुतले पैदा करो
खुद क्रांति की बातें शुरू कर दो
रियायतों के बीच रियासतें पलती रहें

बुरे दिन आ रहे हैं
ईश्वर को याद करो
चुटकुले में खत्म कर दो सच्चाइयाँ
जहाँ नहीं नकली मुद्दे
वहीं होंगी क्रांतियाँ।

 


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