इतने बड़े शहर में नहीं मिलता एक कमरा एक गिलास पानी और थोड़ी-सी तसल्ली एक मेज इस्तेमाल करने के लिए अपनी तरह एक कुर्सी बैठने को चुपचाप खिड़कियाँ नहीं मिलतीं कागजों पर पहले से ही कुछ लिखा होता है।
हिंदी समय में संजय चतुर्वेदी की रचनाएँ