कल, मन्दिर की संगमरमरी सीढ़ियों पर, मैंने एक औरत को देखा। वह दो मर्दों के बीच बैठी थी।
उसका चेहरा एक ओर से पीला-ज़र्द था और दूसरी ओर से गुलाबी-सुर्ख।
हिंदी समय में खलील जिब्रान की रचनाएँ