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लोककथा

अन्तर्दृष्टा

खलील जिब्रान

अनुवाद - बलराम अग्रवाल


मैंने और मेरे दोस्त ने देखा कि मन्दिर के साए में एक अन्धा अकेला बैठा था। मेरा दोस्त बोला, "देश के सबसे बुद्धिमान आदमी से मिलो।"

मैंने दोस्त को छोड़ा और अन्धे के पास जाकर उसका अभिवादन किया। फिर बातचीत शुरू हुई।

कुछ देर बाद मैंने कहा, "मेरे पूछने का बुरा न मानना; आप अन्धे कब हुए?"

"जन्म से अन्धा हूँ।" उसने कहा।

"और आप विशेषज्ञ किस विषय के है?" मैंने पूछा।

"खगोलविद हूँ।" उसने कहा।

फिर अपना हाथ अपनी छाती पर रखकर उसने कहा, "ये सारे सूर्य, चन्द्र और तारे मुझे दिखाई देते हैं।"


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