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लोककथा

आँसू और मुस्कान

खलील जिब्रान

अनुवाद - बलराम अग्रवाल


शाम के समय नील नदी के किनारे एक भेड़िए की एक घड़ियाल से मुलाकात हो गई। दोनों ने परस्पर अभिवादन किया।

भेड़िए ने पूछा, "कैसी बीत रही है, सर?"

"बड़ी बुरी बीत रही है।" घड़ियाल ने कहा, "कभी-कभी तो व्यथा और पीड़ा से मैं रो पड़ता हूँ। और लोग हैं कि कहते हैं - घड़ियाल आँसू बहा रहा है। यह सुनकर तो मैं बता नहीं सकता कि कितना कष्ट होता है।"

इस पर भेड़िया बोला, "तुमने अपनी व्यथा तो सुना दी, अब एक पल मेरी सुनो। मैं संसार की सुषमा को, इसके आश्चर्यों और अजूबों को निहारता हूँ और मारे खुशी के जोर से हँसता हूँ; एकदम खुली हँसी। और पूरा जंगल कहता है - देखो, भेड़िया हँस रहा है।"


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