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लोककथा

बाज़ार

खलील जिब्रान

अनुवाद - बलराम अग्रवाल


एक आदमी के बाग में अनार के बहुत-से पेड़ थे। फसल के दिनों में हर साल वह चहारदीवारी के बाहर चाँदी की एक ट्रे में अनार रख देता। उस ट्रे पर वह स्वयं लिखता - "आपका स्वागत है। नमूने के तौर पर एक बार अवश्य चखें।"

लेकिन लोग आते और बिना फल उठाए वहाँ से गुजर जाते।

इस पर, उस आदमी ने मन में कुछ विचार किया। आगामी साल उसने बाग की चारदीवारी के बाहर चाँदी की ट्रे में एक भी अनार न रखा। लेकिन मोटे-मोटे अक्षरों में यह जरूर लिखा - "यहाँ इलाके के सबसे उत्तम अनार पैदा होते हैं। और इसीलिए उन्हें हम औरों की अपेक्षा कुछ महँगा बेचते हैं।"

और बस, आसपास के इलाकों के लोग उन्हें खरीदने को टूट पड़े।


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