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लोककथा

पागलपन

खलील जिब्रान

अनुवाद - बलराम अग्रवाल


काफी समय पहले की बात है। एक आदमी था। उसे प्यार बाँटने और प्यारा बनने के दण्डस्वरूप फाँसी पर लटका दिया गया था।

गज़ब की बात यह है कि कल मैं तीन बार उससे मिला।

पहली बार : वह एक पुलिसवाले को जेल में चकलाघर न चलाने के बारे में समझा रहा था।

दूसरी बार : वह 'देशनिकाला' की सज़ा पाए एक आदमी के साथ मस्ती कर रहा था।

और तीसरी बार: चर्च के भीतर वह एक पादरी के साथ हाथापाई कर रहा था।


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