"देखो, मैं कितनी फुर्ती से भागता हूँ। तुम हो कि भाग सकना तो दरकिनार, सरक भी नहीं सकते।" गुबरैला गुलाब से बोला।
"जरा और तेज़ दौडो, " गुलाब ने उससे कहा, "मेरे फुर्तीले दोस्त!"
हिंदी समय में खलील जिब्रान की रचनाएँ