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लोककथा

अपनी-अपनी गति

खलील जिब्रान

अनुवाद - बलराम अग्रवाल


"देखो, मैं कितनी फुर्ती से भागता हूँ। तुम हो कि भाग सकना तो दरकिनार, सरक भी नहीं सकते।" गुबरैला गुलाब से बोला।

"जरा और तेज़ दौडो, " गुलाब ने उससे कहा, "मेरे फुर्तीले दोस्त!"


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हिंदी समय में खलील जिब्रान की रचनाएँ