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लोककथा

अक्षत अस्तित्व

खलील जिब्रान

अनुवाद - बलराम अग्रवाल


नहीं, हम व्यर्थ ही नहीं जिये। ऊँची-ऊँची इमारतें हमारी हड्डियों से ही बनी हैं।


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हिंदी समय में खलील जिब्रान की रचनाएँ