लोककथा
बह्र-ए-साज़ खलील जिब्रान अनुवाद - बलराम अग्रवाल
कोई पागल तुमसे या मुझसे कम संगीतज्ञ नहीं है। फर्क केवल यह है कि उसके वाद्य बह्र से बाहर हो गए हैं।
हिंदी समय में खलील जिब्रान की रचनाएँ