लोककथा
आदत अपनी-अपनी खलील जिब्रान अनुवाद - बलराम अग्रवाल
मैं चलते हुए लोगों के साथ चल सकता हूँ। किनारे खड़े होकर सामने से गुजरते हुए जुलूस को देख नहीं सकता।
हिंदी समय में खलील जिब्रान की रचनाएँ