लोककथा
स्वर्ग खलील जिब्रान अनुवाद - बलराम अग्रवाल
स्वर्ग, उस दरवाज़े के पीछे वाले कमरे में है। दुर्भाग्य से उसकी चाभी मुझसे गुम हो गई है।
काश, मैं उसे सिर्फ भूला होता।
हिंदी समय में खलील जिब्रान की रचनाएँ