अपनी बहुत-सी यात्राओं के दौरान एक टापू पर मैंने एक ऐसा जीव देखा जिसका सिर मनुष्य का था और पीठ लोहे की। वह बिना रुके धरती को खा रहा था और समुद्र को पी रहा
था। काफी समय तक मैं उसे देखता रहा। फिर मैं उसके निकट गया और उससे बोला, "क्या तुम्हें कभी पूरा खाना नहीं मिला? क्या तुम्हारी भूख कभी नहीं मिटी और प्यास कभी
शान्त नहीं हुई?"
जवाब में वह बोला, "हाँ, मैं सन्तुष्ट हूँ। नहीं, मैं खाते-खाते और पीते-पीते थक चुका हूँ। लेकिन मुझे डर है कि कल को खाने के लिए धरती और पीने के लिए समन्दर
नहीं बचेगा।"