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लोककथा

कागज़ का बयान

खलील जिब्रान

अनुवाद - बलराम अग्रवाल


बर्फ-से सफेद कागज़ ने कहा, "मैं बेदाग़ पैदा हुआ और जिन्दगीभर बेदाग़ ही रहूँगा। स्याही मेरे नजदीक आए या कोई धब्बा मुझपर लगे, उससे पहले मैं जल जाना और सफेद राख में तब्दील हो जाना पसन्द करूँगा।"

स्याही से भरी दवात ने कागज की बात सुनी। मन-ही-मन वह अपने कालेपन पर हँसी। उसके बाद उसने कागज़ के नज़दीक जाने की कभी जरूरत नहीं समझी ।

बहुरंगी पेंसिलों ने भी कागज़ की बात सुनी। वे भी कभी उसके नज़दीक नहीं गईं।

और बर्फ-सा सफेद कागज़ जिन्दगीभर बेदाग़ और पावन ही बना रहा - शुद्ध, पवित्र और कोरा।


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