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कविता

सॉनेट का पथ

त्रिलोचन


इधर त्रिलोचन सॉनेट के ही पथ पर दौड़ा
           सॉनेट सॉनेट सॉनेट सॉनेट क्या कर डाला
           यह उस ने भी अजब तमाशा। मन की माला
गले डाल ली। इस सॉनेट का रस्ता चौड़ा

अधिक नहीं है। कसे कसाए भाव अनूठे
          ऐसे आएँ जैसे किला आगरा में जो
          नग है, दिखलाता है पूरे ताजमहल को।
गेय रहे, एकान्विति हो। उस ने तो झूठे

ठाट-बाट बाँधे हैं। चीज किराए की है।
         स्पेंसर, सिडनी, शेक्सपियर, मिल्टन की वाणी
         वर्ड्सवर्थ, कीट्स की अनवरत प्रिय कल्याणी
स्वर-धारा है, उस ने नई चीज क्या दी है!

        सॉनेट से मजाक भी उसने खूब किया है,
        जहाँ तहाँ कुछ रंग व्यंग्य का छिड़क दिया है।

 


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हिंदी समय में त्रिलोचन की रचनाएँ