यदि समाज की, इतिहास की, व्यक्ति की नियति पहले से निर्धारित है तो कहाँ रह जाता है प्रश्न पाप पुण्य का छायालोक में भटकते प्रेत से इस प्राण को स्वीकार कर लो तुम यह तुम्हारी ही उदघोषणा है "सर्व धर्मात परित्यज्य मामेकम् शरणव्रज"
हिंदी समय में कलावंती की रचनाएँ