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कविता

पिता

कलावंती


पिता जब तक थे जीवित
कितनी बड़ी आश्वस्ति थे।
ठीक चले गए उस समय
जिस समय मेरे पंखों ने, उड़ान की तैयारी की
पिता ने अपनी अंतिम उड़ान ले ली
पिता ने किए थे क्या क्या जतन मेरे लिए,
अब जब बिखरे हैं सुख, मेरे आस पास
तो सोचती हूँ
काश पिता देख पाते कि
मैंने ठीक उनके सपनों से
कुछ नीचे ही सही
पर बना तो ली है,
अपनी एक दुनिया।

 


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हिंदी समय में कलावंती की रचनाएँ