मैंने कहा प्रेम, और झर पड़े कुछ हरसिंगार मैंने कहा स्नेह, और बिछ गए गुलाब। मैंने कहा मित्रता, और भर गई सिर से पाँव तक अमलतास से और जिंदगी तुम्हारी शुभाकांक्षाओं के उजास से।
हिंदी समय में कलावंती की रचनाएँ