अक्सर स्त्रियाँ सुख का हाथ छोड़कर दुख को पार करा देती है सड़क। घर के चूल्हे चौके, बरतन बासन की तरह ही है घरवाला भी उसकी गृहस्थी का एक औजार। कभी कभी सहती जूतम पैजार गए के लौटने का करती है इंतजार, कि कहाँ जाएगा बुद्धू लौट के घर को आएगा बुद्धू!
हिंदी समय में कलावंती की रचनाएँ