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गूलर के पेड़ पर बैठा उल्लू
बड़े जोर से चीखा था
और उसके नीचे अपने बेटे को दफनाकर
श्मशान से तुरंत लौटे
स्वप्न, संघर्ष और मोहभंग जैसी
तमाम प्रक्रियायों से गुजरे
उस हताश वजूद ने
बीड़ी का धुआँ उगलते सोचा था,
जिंदगी में ढेर सारे झूठ भी उसने बोले
अपने बेमानी वजूद की खातिर
तमाम उम्र सच झूठ के जोड़ घटाव में बीता,
फिर भी उसके रोहिताश्व को गजभर कफन
मयस्सर क्यों न हुआ
वह तो हरिश्चंद्र नहीं था!
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