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मासूमियत सबको अच्छी
लगती है
पर कौन खड़ा होना चाहता है
मासूमियत की रक्षा के लिए
हाशिए पर लिखी
कविता की समीक्षा के लिए
इसलिए
अपनी मासूमियत बचाने के लिए भी
कभी कभी शातिर होना पड़ता है मेरे दोस्त!
ठोंक पीट बजा के देखा है जिंदगी को
बजता है ठीक से तभी
जब अंदर हो कुछ
वर्ना तो यूँ ही उड़ जाता है
हल्के बादलों सा इधर उधर
अच्छी और अच्छी के लालच में
छूटती जाती हैं -
जीवन की सभी अच्छी चीजें
मासूमियत भी।
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