विचलित मन की आशंकाओं ने एक भ्रमजाल बुना था कल्पित स्नेह की आशा ने ये सोच सींचे थे स्वप्न कि गंध की फसल काटेंगे।
हिंदी समय में कलावंती की रचनाएँ