कविता
भ्रमजाल कलावंती
विचलित मन की आशंकाओं ने एक भ्रमजाल बुना था कल्पित स्नेह की आशा ने ये सोच सींचे थे स्वप्न कि गंध की फसल काटेंगे।
हिंदी समय में कलावंती की रचनाएँ