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कविता

अभिसार

कलावंती


तुमसे क्या पूछूँ
खुद अनुत्तरित सवालों की
गुनहगार हूँ मैं
जो कभी किए नहीं
उन्हीं गुनाहों का स्वीकार हूँ मैं
नेह बंधनों की आँच में तपती
तबाही का इकरार हूँ मैं
अनकही पीड़ा का
निस्सीम गहन विस्तार हूँ मैं
विदग्ध हृदय ले
उम्रभर की विरहन का अभिसार हूँ मैं

 


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हिंदी समय में कलावंती की रचनाएँ