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कविता

हे कृष्ण

कलावंती


हे कृष्ण
हम भटक गए हैं रास्ते से
या रास्ते ही भटक गए हैं हमसे
रास्ते विभक्त हो गए हैं पगडंडियों में
और पगडंडियाँ उलझ गई हैं
आपस में ही
व्यवस्था के नाम पर क्यों मिला
हमें यह व्यवस्थाहीन समाज
क्यों भुगतें यह सजा
क्या हमसे खता हुई
सभ्यता के नाम पर
संस्कृति बेठिकाना बेपता हुई
इनसानियत का न रहा
इनसान से अब वास्ता
हे कृष्ण
दिखा जाओ मोहांध अर्जुन को
तुम फिर से रास्ता।

 


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