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मुखौटों पर गीत लिखनेवाले गीतकार
उनपर कविताएँ
लिखनेवाले शब्द शिल्पी
पूछती हूँ प्रश्न एक तुमसे
उत्तर दोगे?
तुम स्वयं मुखौटों से कितने परे हो
जानते हो तुमसे यह प्रश्न पूछते ही
मैं स्वयं से भी यही प्रश्न पूछने लगी हूँ।
किंतु इसका उत्तर
न तुम दे पाओगे न ही मैं दे पाऊँगी ,
सच की अभिव्यक्ति कस साहस चुक गया है शायद।
फिर भी इतना तय है
मुखैाटों के अंदर स्वतंत्रता के लिए,
तड़पता अंतकरण और
सच की तलाश का संघर्ष,
अवश्य ही निरंतर जारी है तुम्हारे अंदर
तभी तो लिख पाते हो
मुखैाटों पर कविता।
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