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कविता

सन्नाटा

कलावंती


तुलसी आकर देख जाओ
अपने राम की भूमि को
सीता फिर हुई कलंकित कैसे दे अग्निपरीक्षा
किससे करे फरियाद
रावण अब राम के वेश में चलता है
पाप ऋषियों के आश्रम में ही पलता है।
सृष्टि फिर कुचली जा रही विनाश के पग तले
बिन पाँवों का आदमी
कब तक कहाँ तक चले
तुलसी आकर देख जाओ
अपने राम की भूमि को

 


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हिंदी समय में कलावंती की रचनाएँ