hindisamay head


अ+ अ-

कविता

आकाश

कलावंती


आकाश
मुझे तुम्हारे विस्तार से ईर्ष्या है और
ईर्ष्या है तुम्हारे नीलेपन से
यह अथाह नीलापन जो तुम स्वयं में समेटे बैठे हो
क्यों नहीं बाँटते उन इकाइयों के साथ
जो कालिमा की गहन परतों से उबरना निकलना चाहते हैं

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में कलावंती की रचनाएँ