hindisamay head


अ+ अ-

कविता

घेरा

कलावंती


अँधेरों के घेरों से निकल
पाने की छटपटाहट जितनी बढ़ी
यह घेरा
उतना ही कसता रहा
अपना ही साया
मुझे डसता रहा
किसी खूबसूरत पन्ने पर लिखी
अर्थहीन इबारत की तरह।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में कलावंती की रचनाएँ