होरी तुम सचमुच आम आदमी के प्रतिनिधि थे उम्रभर जले मेहनत की तपिश में और तुम्हारे नाम नहीं हो सका गऊ-दान भी पर तुम तो बींसवी सदी के थे इक्कीसवीं सदी के होरी को तो शायद कफन भी मयस्सर नहीं।
हिंदी समय में कलावंती की रचनाएँ