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कविता

होरी

कलावंती


होरी
तुम सचमुच
आम आदमी के प्रतिनिधि थे
उम्रभर जले
मेहनत की तपिश में
और तुम्हारे नाम नहीं हो सका
गऊ-दान भी
पर तुम तो बींसवी सदी के थे
इक्कीसवीं सदी के
होरी को तो शायद
कफन भी मयस्सर नहीं।

 


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हिंदी समय में कलावंती की रचनाएँ