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अक्सर अपने आसपास से आती कराहों को
तुम अनसुना कर देते हो
और शिकायत करते हो
अब कविता नहीं बुनती
तुम्हारी लेखनी
अपनी संर्कीणता क्यों मढ़ना चाहते हो
कविता के गले
क्या वह मुहताज है प्रेमगीतों की
कोमल अहसासों की
कविता तुम्हारी कराहों को भी
उतनी ही सम्रगता से
समेट पाने की क्षमता रखती है
कविता नवकिसलय से ही नहीं
चट्टानों से भी फूटा करती है
और तुमने देखा होगा
चट्टानों से फूटने वाली कविता
कितनी मधुर होती है कितनी स्निग्ध!
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