अ+ अ-
|
तब तक लिखूँगी
जब तक मेरे हाथों में
लेखनी थामने की ताकत होगी।
मैं लिखूँगी,
सृष्टि से विनाश के काल तक
धरती से आकाश के भाल तक,
इस छोर से उस छोर के डाल तक।
मैं अवश्य लिखूँगी
हमारे शोषण को,
अन्याय के पोषण को,
चाहे तुम मुझे
कितना ही क्यों न कोसो,
क्यों न करो छीनने की कोशिश
तुम मुझसे मेरी लेखनी।
किंतु जबतक रहेगी मानस पर
स्मृति-पत्र दुहरे न्याय की
मैं लिखूँगी,
लिखती रहूँगी
तब तक अबाध गति से
व्यथा को,
तिमिर को।
|
|