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कविता

उम्मीद

रतीनाथ योगेश्वर


बच्चो
हमें पकड़ो
हम सेमल के रोएँ की तरह
उड़े जा रहे हैं...

बच्चो
हमें मिट्टी की रोटी बनाना
और बिना आग के चूल्हे में भी
फूँक मारना सिखाओ...

बच्चो
हमें सच बोलना और
खिलखिलाकर हँस पड़ना सिखाओ

बच्चो
हमें डंडे पर सवारी करना
और आग से भी खेलना सिखाओ

बच्चो हमें,
रूठ जाने पर
तुरंत मान जाना सिखाओ

बच्चो हमें,
चिडियों के आगे दाने डालना
और सबसे प्रेम करना सिखाओ

बच्चो
हमें जानना सिखाओ
और बेहिचक पूछना सिखाओ बच्चो

बच्चो
हमें पकड़ो
हम सेमल के रोएँ की तरह
उड़े जा रहे हैं...।

 


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