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कविता

कोई दिन था जबकि हमको भी बहुत कुछ याद था

त्रिलोचन


कोई दिन था जबकि हमको भी बहुत कुछ याद था
आज वीराना हुआ है, पहले दिल आबाद था।

अपनी चर्चा से शुरू करते हैं अब तो बात सब,
और पहले यह विषय आया तो सबके बाद था।

गुल गया, गुलशन गया, बुलबुल गया, फिर क्या रहा
पूछते हैं अब व` ठहरा किस जगह सैयाद था।

मारे मारे फिरते हैं उस्ताद अब तो देख लो,
मर्म जो समझे कहे पहले वही उस्ताद था।

मन मिला तो मिल गए और मन हटा तो हट गए,
मन की इन मौजों प` कोई भी नहीं मतवाद था।

रंग कुछ ऐसा रहा और मौज कुछ ऐसी रही,
आपबीती भी मेरी वह समझे कोई वाद था।

अन्न जल की बात है, हमने त्रिलोचन को सुना,
आजकल काशी में हैं, कुछ दिन इलाहाबाद था।

 


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