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कविता

आँसू बाँधे है मैंने गठरिया में

त्रिलोचन


आँसू बाँधे मैंने गठरिया में
            अपने भी हैं और पराए भी हैं ये
            उपराए हैं तो तराए भी हैं ये
            आप आ गए हैं बराए भी हैं ये
            साधे हैं मैं ने कन कन डगरिया में
            देखा ये पत्थर के ऊपर चुए हैं
            चुपके से चू चू कर चुप हुए है
            सूने में अटके अभी अनछुए है
            काँधे है मैं ने बढ़ के नगरिया में

 


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