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कविता

आरर-डाल

त्रिलोचन


सचमुच, इधर तुम्हारी याद तो नहीं आई,
झूठ क्या कहूँ। पूरे दिन मशीन पर खटना,
बासे पर आकर पड़ जाना और कमाई
का हिसाब जोड़ना, बराबर चित्त उचटना।

इस उस पर मन दौड़ाना। फिर उठ कर रोटी
करना। कभी नमक से कभी साग से खाना।
आरर डाल नौकरी है। यह बिल्कुल खोटी
है। इसका कुछ ठीक नहीं है आना-जाना।

आए दिन की बात है। वहाँ टोटा-टोटा
छोड़ और क्या था। किस दिन क्या बेचा-कीना।
कमी अपार कमी का ही था अपना कोटा,
नित्य कुँआ खोदना तब कहीं पानी पीना।

धीरज धरो आज कल करते तब आऊँगा,
जब देखूँगा अपने पुर कुछ कर पाऊँगा।

 


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