लुटेरे ने जिस भिखारी से रोटी छीनने की कोशिश की उस के हाथ में दो रोटियाँ थीं। हाथा-पाई की हालत में लुटेरे ने भिखारी का गला दबा डाला जिस के परिणाम में उस की मृत्यु हो गई। लुटेरे ने तो एक रोटी के लिए भिखारी पर झपटा मारा था। भिखारी बच जाता तो एक रोटी से अपनी भूख मिटा लेता। लुटेरे ने केवल एक रोटी से अपना नाता माना और दूसरी रोटी के बारे में सोचने लगा कि इस रोटी की अनिवार्यता क्या है? उसने सामने से आते हुए साधु को देख लेने पर उसे एक रोटी देना चाहा। साधु को भूख तो लगी थी, लेकिन रोटी को लेना उसके लिए संभव नहीं हुआ। उसने रोटी में सना हुआ अदृश्य खून देख लिया था। उसे रोटी के लिए हाथ न बढ़ाते देख कर लुटेरे ने उसे डाँटा। उसने जबरदस्ती साधु के हाथ में रोटी रख दी और अपने हाथ की रोटी खाते वहाँ से चला गया।
साधु हाथ में रोटी लिए सोच में खोया रहा। उसकी समझ में आया उसे करना क्या है। उसने हाथों से एक गड्ढा खोद कर रोटी को उसमें छिपा दिया। उस रोटी से बाद में वहाँ नव युग के लिए धर्म का पेड़ उगा। भिखारी की मृत्यु के दर्द और साधु के स्पर्श से धर्म को जन्म का आधार मिला था।