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कविता

भवसागर

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी


इसी में बोना है अमर बीज
इसी में पाना है खोना है प्यार

भवसागर है यह संतों का

इसी में ढूँढ़ना है
निकलने का द्वार।

 


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हिंदी समय में विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की रचनाएँ