बची है धरती में जन्म देने की शक्ति बचा हई बादलों में भूरा रंग मुझे संतोष है बची है लकड़ी में आग बचा है नींद में स्वप्न मुझे संतोष है बच गई हो ओस की बूँद की तरह बच्चे की जिद की तरह मुझमें थोड़ा-सा तुम मुझे संतोष है ।
हिंदी समय में विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की रचनाएँ