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कविता

सैनिक

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी


जीविका के लिए निकले थे
हम अपने-अपने घरों से

उन्होंने हमारे हाथों में
थमा दी थीं बंदूकें
सिर पर हेल्मेट
और पैरों में बूट

मैं बरसाता हूँ गोलियाँ
धुआँधार
वे गिरते हैं
वे छटपटाते हैं
मैं उनमें से किसी को नहीं पहचानता

मुझे बताया गया है
वे मेरे दुश्मन हैं
और जिसके लिए लड़ रहा हूँ मैं
वही है मेरा देश।

 


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हिंदी समय में विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की रचनाएँ