कविता
झूठ - 4 दिव्या माथुर
झूठ
सर पर चढ़ के बोलता है यही सोच के ख़ामोश हूँ मैं ये न समझना कि मेरे मुँह में ज़ुबान नहीं
हिंदी समय में दिव्या माथुर की रचनाएँ